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Tuesday, September 21, 2010

नीरजा के लिए

लकड़ी का एक बड़ा सा घर था ऊँचे ऊँचे पहाड़ों में
उस घर की थी रानी तुम
मेरी प्यारी नानी तुम

किताबे तुम न पढ़ पाती थी
न देखा कोई शहर  कभी
फिर कैसे सुना पाती थी
दुनिया भर की कहानी तुम

तुम्हारे चेहरे की झुरियों में
परी लोक के रस्ते थे
तुम्हारे हाथों से हमेशा
अच्छे  पकवान ही बनते थे

जब तुम थी तब जाना न था
तुम चली गयी तो जाना है
जीवन पथ पर चलते-चलते
सब पीछे छूटता जाता है
कहानी,सपने,बचपन और अब
मेरी प्यारी नानी तुम.

1 comment:

  1. Very useful reading. Very helpful, I look forward to reading more of your posts.

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