वह कोमल होकर भी
ढो लेती है सारी ज़िन्दगी
हंसकर तुम्हारी
हर मर्यादा का भार
और तुम
केवल नौ महीने
भी उसको कोख नहीं दे पाते
ज्यों-ज्यों बड़ी वह होती
सिर्फ बोझ होने का
उसे एहसास दिलाते
सोचना कभी
क्या होता जो
तुम्हारी माँ को भी
बेटी होने के लिए
मार दिया जाता
ना तुम होते और ना
होता तुम्हारी
सोच का गहरा अँधेरा
जिसमे तुम्हे
तुम्हारी अजन्मी बेटी की
चीखें नहीं सुनाई देती !
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