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Friday, October 14, 2011

रात और चाँद

एक रात थी 
काली स्याह धुंधली
अपने ही सायों में डूब कर
घुलती चुपचाप

एक चाँद था
चमकीला,सब तारों से
ज्यादा रोशन
लेकिन अकेला

फिर रात और चाँद
इक बार मिले
और दोनों ने यह मान लिया
अब साथ चलें

मैं अपने आंचल में
छिपा लूं तुमको
और तुम मुझमे भर दो
अपनी रूह की रौशनी

उस दिन एक खूबसूरत
रिश्ता बना
नाम जिसका प्यार पड़ा
और शायर ने जिसको
फिर चांदनी रात कहा !


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