Pages

Pages

Wednesday, August 8, 2012

Notes from the sabbatical

रुकी हुई है ज़िंदगी
जैसे काग़ज़ की नाव से
कोई अचानक उसके
भंवर छीन ले

सूखी रेत में
धंसते-धंसते
दूर तक किसी बादल
की उमीद भी ना मिले !

--------------------------------
प्यार इंद्रधनुष जैसा
क्षण भन्गुर,अल्पायु
और याद फफूंद जैसी
आत्मा को सालती,गलाती


बारिश बड़ी बेरहम !
-------------------------------
घिस घिस के लम्हों को
बार बार
आँसुओं से धोया
कुरेदा,खरोंचा
दिल के लहू में भिगोया

यह इश्क़ की सियाही
की छाप छूटती ही नहीं !

1 comment: