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Sunday, January 27, 2013

कविता !!

जब शब्द न मिले तब  भी 
जब विचार भटकते रहें 
और चुप्पी की दीवारों से 
टकराकर लौट  आते हैं ,
तर्क सिर्फ ले जाते हैं 
क से ख तक 

तब कल्पना तूलिका  के 
एक ही झटके  से 
चित्रित करती है 
मूक संवादों के 
कई दौर 

और जन्म लेती है 
रंग-बिरंगे मोतियों से 
बनी एक अजीब सी 
कविता !!

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