Pages

Pages

Tuesday, May 7, 2013

कविता



एक चतुर  चोर जैसे 
ज़िन्दगी के खजाने 
की चमक  से 
चुराकर कुछ सुनहरे लम्हे 

मुट्ठी में बंद कर 
छुपा लेती हूँ 
कविता के 
तहखाने में 

यूँ पनपती है 
मेरी दौलत !

No comments:

Post a Comment