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Monday, May 20, 2013

मेरी नानी


मेरी नानी 
सड़कें  कम थी वहाँ
पर दिल  से दिल
के  रास्ते  जुड़ते थे

वहाँ के सेबों से भी मीठे
वहाँ पर  लोग रहते  थे

न टीवी थी ,न फ़ोन थे
पर  खूब  बातें होती थी
कहानियाँ बहुत लम्बी
और छोटी रातें होती थी

उसके खुरदरे हाथों को
मेरी गालों से प्यार था
जब  रूठने पर झट से
वो मुझको मनाती थी
सब से छुपाकर मुझको
अपना संदूक दिखाती थी

उस संदूक से जो मांग कर
मैंने रख लिए -
नानी की खुशबू वाले
कुछ कागज़ के टुकड़े
कुछ रेशमी धागे
दो-चार बेमेल चूड़ियाँ
और यादों की  कुछ बातें

मेरी नानी के घर का मेरे
पास बस यही हिस्सा है !


2 comments:

  1. u have, of course, already read my grandmother's house. this is lovely, and reminds me of that poem.

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