आज फिर यादें
खंगाली हैं
और स्मृति के
स्थिर स्रोतों से
माँ की हज़ार बातें
नयी हो आई हैं
कैसे माँ की आवाज़
बदल जाती
जब तार वाले फ़ोन से
वो अपनी माँ से
बतियाती
अपने गाँव की
दहलीज़ पर
हमेशा माथा टेकती
अपने स्कूल को देखकर
मुस्काती
कभी चपातियाँ
सेकते -सेकते
पहाड़ी गाने गुनगुनाती
और कभी
चाय के साथ
खुद भी गुस्से में उफनती जाती
अब माँ की आवाज़
में वो खनक गुम है
अब उनके जीवन
में आपाधापी नहीं
पर शायद
अकेलापन है
बेटी से हर माँ
की तरह
वो भी कर लेती है
मुझसे हज़ार बातें
पर बेटी बनकर
माँ से बातें
नहीं कर पाने का
एकाकीपन है
फिर अचानक
फ़ोन पर सुनती हूँ
दो आवाजें
वही खनक ,वही जादू
मेरी माँ से बतियाती मेरी बेटी
कहाँ मेरी नानी से कम है !!
circle of life!!
ReplyDeleteWonderful...
ReplyDeleteyes HDWk !
ReplyDeleteThanks Himanshu !
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