परिवर्तन तो है तय मगर
क्या जर्जरता से अभिशप्त हैं
सारे सपने
कविता,कला और जीवन भी
जैसे बुड्ढी होती आँखों
के काले घेरों की परतों
को दिन की चमक
भी बेमानी है
क्या वैसे ही
घुल जाना ही
सर्वस्व का अर्थ
है परिवर्तन
क्या जर्जरता से अभिशप्त हैं
सारे सपने
कविता,कला और जीवन भी
जैसे बुड्ढी होती आँखों
के काले घेरों की परतों
को दिन की चमक
भी बेमानी है
क्या वैसे ही
घुल जाना ही
सर्वस्व का अर्थ
है परिवर्तन
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