जब विचार भटकते रहें
और चुप्पी की दीवारों से
टकराकर लौट आते हैं ,
तर्क सिर्फ ले जाते हैं
क से ख तक
तब कल्पना तूलिका के
एक ही झटके से
चित्रित करती है
मूक संवादों के
कई दौर
और जन्म लेती है
रंग-बिरंगे मोतियों से
बनी एक अजीब सी
कविता !!
excellent !
ReplyDelete