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Monday, September 16, 2013

कस्तूरी

This story first appeared in the Anniversary issue of THE BROWSING CORNER.
 
लालू ने माँ से फ़ोन पर बात करने की कोशिश की थी ,पर "ओ लालुआ " से अधिक माँ कुछ न बोल पाई और बस उसकी सिसकियाँ लालू के कानों में अब तक गूंज रही थी I लालू आँख बंद कर दूर पहाड़ों में अपने गाँव में,अपने घर पहुँच गया था I पानी की कूहल पर से कूद कर अपने सेब के पेड़ों को छूता हुआ, कच्चे टमाटरों की क्यारिओं के बीच से कूदता हुआ, ओबरे में गौरी,नीली और धनु को आवाज़ लगाता सीधा चूल्हे के पास,माँ आज शायद घी-बाली बना रही थी I ज़रूर पवना के रिश्ते को लड़के वाले आ रहे होंगे I पवना लकड़ी के लम्बे बरामदे के एक छोर पर बैठ कर अपने बाल संवार रही है ,लालू उसकी कंघी छीन  कर भागता है तो पढाई छोड़ लीला और सीता भी पवना के साथ उसके पीछे भागने लगती हैं I लालू बहुत तेज़ भाग रहा है और फिर अचानक वो सारी श्वेत-श्याम तस्वीरें लाल हो जाती हैं, जैसे किसी ने उसकी यादों पर लाल स्याही गिरा दी हो I लालू अपने  सिर  को अपने घुटनों में दबाकर बैठ जाता है और उसकी गालों पर बेरंग नमकीन यादें बहती जाती हैं I

लालू सिर्फ पांच साल का था जब पहली बार अम्मा के साथ धार पार की जातर में गया था I उसकी उम्र के बाकी लड़के तो शहर से आये नए-नए खिलोनों और झूलों में ही फंसे थे पर लालू बेचैनी से मंदिर में होने वाली बकरे की बलि की बाट जो रहा था I लालू को उसकी बड़ी बहन पवना  ने बताया था कि  बलि के बाद मस्तक देवी को चढ़ाया जाता और धड़ का मांस प्रसाद मानकर बाँट दिया जाता  I चूँकि वो ब्राह्मण थे उन्हें मांस खाना निषेध था ,पर फिर भी बलि देखने की लालू की इच्छा प्रबल थी I एक ही झटके में तलवार ने उस बकरे के मस्तक को देवी की चौखट पर गिर दिया था,सारा आंगन खून से रंग गया था, और उसका निर्जीव धड़ वहीँ लुड़का पड़ा था,लालू के अलावा सारे औरतों और बच्चों ने आंखें मूँद कर हाथ जोड़ रखे थे I

पिछले साल उसने अपने दोस्त हल्कू के साथ गाँव के तालाब से पकड़कर एक बतख का बच्चा मारा था I जैसे टीवी में अमिता बचन गुंडों की गर्दने मरोड़ता था वैसे  ही गर्दन को एक  झटके से घुमाना होता है  I बहुत  मजा आया था पर कोई खून नहीं निकला, बस थोड़ी देर उसने कीं-कीं करी और फिर मर गया I

बुड्ढी दिवाली में गाँव के बड़े लड़के एक जंगली मुर्गे का शिकार करके लाये थे ,उससे तो खूब खून निकल रहा था I लालू को खून देखके बड़ा मजा आता, जैसे उसके अंदर का कोई अदृशय राक्षस तृप्ति पा जाता I

उसने बड़ी मिन्नत कर के संजू भाईजी से एक टुकड़ा  भुना हुआ मांस माँगा था और चोरी-चोरी ओबरे में खा ही रहा था जब अम्मा पता नहीं कहाँ से आ गयीI बापू तो चौपाल में था ,नहीं तो बहुत मार पड़ती I

अम्मा ने बस  थोड़ा  सा डांटा और फिर प्यार से समझाते हुए बोली ,"  देख लालुआ , हम तो देवता जी के पुरोहित है ना ,कल मेरे साथ मंदिर में जा कर देवता जी से क्षमा मांग लेना,  तू  तो बालक है न इसलिए वो नाराज़ ने होंगे I देख अगर तेरे बापू को पता चला तो फिर ..."
लेकिन  लालू के अन्दर के पीशाच के मुंह तो उस दिन खून लग गया था , उसके बाद बहुत बार उसने छुप -छुपाकर मांस खाया था ,कभी घर में कभी बाहर I

ज्यूं -ज्यूं  लालू बड़ा होता गया ,पिशाच की खून की भूख भी बढ़ती गयी I पर गाँव में केवल दूसरी जात वाले शिकार को जाते और मांस काटते और खाते I लालू के पुरखे तो ग्राम देवता का पुजारी थे और उनके घर में यह सब निषेध था I लालू धीरे-धीरे बहाने बनाकर उन लड़कों के साथ जाने लगा I पहले-पहल उन्होंने उसे उसके दादा पुरोहित जी के डर से बहुत रोका ,पर जब वो कैसे भी न माना ,तो उन्होंने उसे अपनी मण्डली में शामिल कर लिया I हर पूनम की रात को जब लड़कों की टोली शिकार को निकलती ,लालू सबसे आगे चलता, सबसे ज्यादा जल्दबाज़ी उसे ही रहती,खून देखने की I

लालू  करीब 13 या 1 4 का रहा होगा जब ऐसी ही एक शिकार की रात अचानक से झाड़ियों को चीरता हुआ एक जंगली सांड टोली के सामने आ गया था, बड़ी बहादुरी से बिना पलक झपकाए लालू ने एक ही झटके में उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी थी I उस दिन से लालू मण्डली का हीरो बन गया था I

सालों से चली आ रही उसकी यह चोरी एक रात पकड़ी गयी ,लालू हर शिकार के बाद एक हड्डी ओबरे में दबा देता ताकि एक दिन वो अपने सारे शिकार गिन सके  I जैसे उनके पुरखों ने लड़ाइयों से जीते हुए सिक्के चौखटों पर ठोके हुए थे, जो उनकी बहादुरी के साक्ष्य थे I आज तो बड़ा खास दिन था ,आज टोली ने एक कस्तूरी हिरन मारा था,बड़े-बूढ़े कहते थे की जब कस्तूरी का मीट पकता तो कई मीलों तक उसकी सुगंध जाती,वही खुशबू जो कस्तूरी की नाभि में होती है और जिसकी खोज में वो भटकता रहता है I

इस बार लालू सब से छुप कर मीट का टुकड़ा तो घर न ला सकता था ,पर कस्तूरी के सुंदर सींग उसके हिस्से आये थे I जैसे ही एक छोटा सा गड्ढा बना कर लालू सींग दबाने वाला था पता नहीं कैसे बापू ओबरे में आ गए I गाँव के कुछ लोगों ने उनको लालू की हरकतों की ख़बर दे दी थी और वो लालू को सबूत के साथ पकड़ना चाहते थे I उस दिन लालू की खूब पिटाई हुई,वैसी ही जैसी कभी-कभी अम्मा की होती थी ,हाथों से ,लातों से ,छड़ी से ,घूसों से I लालू की बहनें और अम्मा चुपचाप देखती रही,वो कर भी क्या सकती थी I

लालू ने सोच लिया था ,वो अब यहाँ नहीं रहेगा,बम्बई जायेगा और हीरो बनके अमिता बचन की तरह गुंडों की खूब धुनाई करेगा I यही होगा उसकी दिलेरी का सबूत ,फिर देखना कैसे बापू ढोल-नगाड़े लेकर आयेगा उसको मनाने I

अगली सुबह लालू गाँव से कुल्लू की पहली बस में चढ़ गया,फिर एक बस के बाद एक और बस,फिर ट्रेन  और एक ट्रेन बदल कर चौथे-पांचवे दिन लालू बनारस स्टेशन पर उतरा था I

लालू दो दिन से भूखा था, घर से लाए हुए पैसे खर्च हो गए थे I भटकता-भटकता लालू घाटों पर पहुँच गया था और भूख से बेहाल भिखारियों की कतार  में बैठ गया था I एक स्वामीजी खाना बाँट रहे थे ,लालू की तरफ आलू-पूरी बढाता उनका हाथ अचानक रुक गया था I लालू ने अपनी हलकी भूरी आँखों से ऊपर देखा , लम्बी धौली दाड़ी ,लम्बे बाल ,उन्होंने पूछा ," कहाँ से आये हो बेटा ?"

कुछ समय बाद लालू को उनके सेवक बाबाजी के आश्रम में ले गए थे I उसे नए कपडे दिए गए ,उसके सिर के  सारे बाल निकाल दिए गए थे I शाम की आरती के बाद उसे बाबाजी के कमरे में भेज दिया गया ,उस रात लालू दयानंद बन गया I अब वो हर समय बाबाजी के साथ ही रहता ,उनके सब छोटे-मोटे काम करता और देर रात जब बाबजी थक कर सो जाते और  उसे खुद से घिन्न  आने लगती तो घंटों घाट पर बैठा रहता I ऐसी ही एक रात उसने पहले बार अघोरियों को देखा उस पार के घाट पर जलती चिताओं के इर्द-गिर्द कुछ करते हुए I अगली अमावस को लालू उनके पास जा पहुंचा ,उनका विभत्स रूप जो दुनिया को डराता था,वही लालू को आकर्षित कर रहा था  I
अब वो हर रात मरघट में उनके शिविर पर जाता ,पहले उन्होंने उसे डराया, भगाने  की खूब कोशिश की ,पर जब वो हर रात जाता रहा तो उन्होंने उसे अपना सा लिया I वो उनकी चिलमे भरता ,कभी भांग का एक-आध कश उसे भी मिल जाता ,चाय बनाता और घंटों उनकी कहानियाँ सुनता I लालू एक बार फिर दो जिंदगियां जीने लगा I
लालू को अब बनारस में 2 साल से अधिक समय हो गया था, उसने कभी घर के बारे में नहीं सोचा था I फिर एक दिन सम्मलेन से बाबाजी एक और छोटे लड़के को ले आये थे I वो उत्तराखंड के किसी गाँव से भाग कर आया था ,उस रात लालू की जगह बाबाजी के कक्ष में वो गया था I अब बाबाजी के नया चहेता वो था -पदमनाभ I
एक दिन पौ फूटे जब लालू अघोरियों के यहाँ से लौट रहा था तो उसने देखा पदमनाभ,कुँए के पास बैठा रो रहा था I लालू को आता देख वो भाग कर आया और लालू से लिपट गया ," दया भाई मुझे यहाँ अच्छा  नहीं लगता ,मुझे गाँव जाना है,माँ के पास "I वो सुबकता जा रहा था और लालू का सारा क्रोध,इर्ष्या  पिघल रही थी I एक पल को उसे लगा जैसे उसकी बहन लीला उससे  लिपटकर रो रही  हो I
उस दिन शाम को बाबाजी ने उसे फिर अपने कक्ष में बुलाया ,और बिना कुछ बोले कुछ तस्वीरें उस पर फ़ेंक दी ,उसकी तस्वीरें अघोरियों के साथ I बाबाजी बोले," दयानंद ये क्या है ,क्या कमी है तुम्हे यहाँ जो तुम ऐसे…. खैर इससे पहले की तुम्हारे साथ से दूसरे लड़के भी बिगड़ जायें तुम कल ही चले जाओ ,असीमानंद तुम्हे पैसे दे देगा I "

लालू कुछ नहीं बोला ,पैसे उसने ले लिए थे I रात को करीब बारह बजे उसने बाबाजी का दरवाज़ा खटखटाया ,वो झल्लाकर बोले ," कौन है ?" लालू कुछ नहीं बोला  उसने फिर दरवाज़ा खटखटाया ,जैसे ही दरवाज़ा खुला लालू छुरा घोंपता गया और पदम् को ले कर पीछे की दीवार से कूद गया I चार दिन बाद लालू दिल्ली से पदम् को उसके गाँव की बस में बैठा चुका था  और खुद  एक बार फिर  भटक रहा था I
अब वो  अमिताभ बच्चन जैसे हीरो  नहीं बनना चाहता था, अब वो बुरा बनना चाहता था इतना बुरा के अच्छाई की ओट में बुरा करने वालों को सज़ा दे सके I
 
अब लगभग चार  साल बाद दिल्ली का दलदल लालू को रस आने लगा था I अब वो दयाभाई था ,बड़े-बड़े होटलों  और फार्महाउस पर "माल" पहुँचाने वाला दया भाई I पैसा आने लगा था,पर एक खालीपन  था जो शराब से भरता था , अय्याशी  से I जिस्मों की  दलाली के पैसे से भी उसे वैसी ही दुर्गन्ध आती जैसी मरघट में अघोरिओं के चिताओं को कुरेदने से आती , मौत की दुर्गन्ध ,जिसमे लालू सब कुछ भूल पाता ,थोड़े समय के लिए ही सही पर सब कुछ भूल पाता I
 
फिर एक दिन दया लालू बनकर माँ के पास लौटा I माँ छत पर छलियाँ सुखा  रही थी I लालू पहले से अलग दिखता  था पर माँ उसकी आंखें पहचान गयी थी I बापू ने उसे देखते ही मुंह मोड़ लिया और अपने कमरे में चला गया I  माँ ने बताया की इन छह  सालों  में उसकी तीनों बहनों के ब्याह हो गए थे और बापू ने उसको मरा  मानकर पिछली साल उसका श्राद्ध कर दिया था,और सारी ज़मीन-जायदाद तीनों लड़कियों के नाम कर दी थी I माँ का दुःख लालू समझता था पर वो जानता था अब उसके लिए वहां कोई जगह नहीं थी I अगली सुबह ही वो माँ के लिए अपना फ़ोन नंबर लिख कर चुपचाप अपने लौट दलदल में लौट आया था I
अब दया का काम में मन नहीं लगता था ,वो पहले से भी ज्यादा पीने लगा था I  एक दिन जब  कूड़ा लेने वाली लड़की उसकी बोतलें उठा रही थी , उसने देखा उसने चहरे पर कपड़ा बाँध रखा था ,लालू ने उससे पूछा ," ! क्या तुझको मुझसे घिन्न आती है ?"

अचानक पूछे सवाल से वो घबरा गयी और में सिर हिलाया I लालू ज़ोर -ज़ोर से हँसने लगा ,वो डर गयी और जल्दी से अपनी बोरी उठा बाहर की तरफ जाने के लिए मुड़ी  I लालू ने उसका हाथ पकड़ लिया I
वो चिल्लाई ,"साहब क्या कर रहे हो?जाने दो!"
"अभी तो तूने कहा तुझे मुझसे घिन्न नहीं आती",लालू बोला I

उसके बाद क्या हुआ लालू को याद नहीं ,जब पुलिस उसे लेने आई तो वो लड़की वहां खून में लथ पथ  मरी पड़ी थी और चारों तरफ शराब की बोतलों के कांच बिखरे पड़े थे I

कल लालू को बलात्कार और खून के जुर्म में फाँसी होने वाली थी I एक और कस्तूरी अपनी भयावह "मृगतृष्णा " से आज़ाद होने वाला था  I

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