नीम का पेड़
छोटी सी ख़ुशी की
एक पल मिसरी से
नहीं मिट पाता
रोज़मर्रा का
कड़वापन
अब मेरी
आवाज़ भी कड़वी
और कसेले
मेरे सपने भी
पर ज्यों ही
इस कड़वाहट को
मैं थूकने
लगती हूँ
रुक जाती हूँ
कहीं मेरे अन्दर
का नीम का पेड़
सूख न जाए
और फिर से
खाने लगे
मेरे मन की रुई को
प्यार का कीड़ा .
छोटी सी ख़ुशी की
एक पल मिसरी से
नहीं मिट पाता
रोज़मर्रा का
कड़वापन
अब मेरी
आवाज़ भी कड़वी
और कसेले
मेरे सपने भी
पर ज्यों ही
इस कड़वाहट को
मैं थूकने
लगती हूँ
रुक जाती हूँ
कहीं मेरे अन्दर
का नीम का पेड़
सूख न जाए
और फिर से
खाने लगे
मेरे मन की रुई को
प्यार का कीड़ा .
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