चलो आज माँ की बात करती हूँ
ऊनी मोजों की नर्म बुनाई
आज आत्मा पर पहन लेती हूँ
गर्म पकवानों की मीठी खुशबू
आज दिल में फिर भर लेती हूँ
आज माँ की बात करती हूँ
पापड़,अचार, चटनी और दफ्तर
पति,बच्चा ,ससुराल और घर
इसी भागम-भाग में बीती
माँ की हर दोपहर की बात करती हूँ
मैं सीखूं वो भी जो
उसे सिखाया न गया
मैं वहां तक उड़ पाऊँ
जहाँ उसके सपने से भी
जाया न गया
आज मैं माँ की
उस उड़ान की बात करती हूँ
मुझमे जो घोल दी
कतरा-कतरा माँ ने
बूँद-बूँद अपनी उस पहचान
की बात करती हूँ
वो जो दुःख न मैंने कभी बांटे
वो जो शिकवे न उसने कभी किये
माँ-बेटी की ऐसी हजारों बातें
अब मैं कुछ-कुछ समझती हूँ
अब मैं माँ की बात करती हूँ
गुस्से में जो था उसने उगला
रूठने का मेरा झूठा बदला
आज उस विष-अमृत को
साथ - साथ चखती हूँ
मैं जो उम्मीदें पूरी कर न सकी
मेरा भी कुछ खालीपन जो
वो भर न सकी
आज वो तोल-मोल करती हूँ
मेरी बेटी और मुझमे
फिर से जीवंत हुए
उसी रिश्ते को
आज नयी आँखों
से चलो तकती हूँ
आज फिर माँ की बात करती हूँ
ऊन नहीं है बस माँ
मैं तो शब्दों के कम्बल बुनती हूँ
तुम्हारे जैसे लज़ीज़ तो नहीं
पर कुछ-कुछ व्यंजन रचती हूँ
मेरे तुम्हारे सपनों से भी आगे
उसके लिए आशा करती हूँ
वो जो मैंने कहा नहीं तुमसे कभी
एक बार शायद एक ख़त में लिखा
मेरी बेटी वही आई लव यू माँ
हजारों बार दोहराती है
तुमसे कहा नहीं कभी यह भी
की जब-जब वो मुस्काती है
अपनी नन्ही को देखकर
माँ मैं तुमको याद करती हूँ
आज मैं माँ की बात करती हूँ !
even though my hindi is rustic from not having written it in 22 years, your poems are wonderful, the hindi ones have soul.
ReplyDeleteThanks Aaina ! this one is indeed special,my mother is a retired hindi teacher
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