एक ही माँ ने
बुना था एक ही ऊन से
हमारा बचपन
और एक ही संदूक में
उसने संभाली थी
हमारी यादें
पहले दोस्त
और पहले दुश्मन हम
एक दूसरे से न जाने
कितनी बार निजात पाने
का होता होगा मन
लेकिन फिर जब कोई
ठोकर लगती
तो तुम ही याद आते
बचपन के खट्टे-मीठे
राज़ एक दूसरे को बताते
बचपन की निशान छोड़ने वाली
यादें और चोटें
जब पीछे छूटी
तब हम दोनों सीख गए
बिन आवाज़,बिन निशान
की चोट पहुचाना
कभी खुद को अच्छा साबित करने में
तुमको बुरा साबित कर जाना
और कभी प्यार के नाम पे
केवल ओपचारिकता निभाना
फिर कभी एक फन्दा तुमसे छूटा
या फिर धागा मैंने खींचा
बचपन की स्वेटर
उधड़ने लगी और
दीवार पर लगी
माँ की फोटो जैसे
सारे रिश्ते फीके हो गए
सारी यादें
धुन्द्ली पड़ने लगी !
Bahut accha..so poignant
ReplyDeletethanks a lot !
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